कैसा भव्य, कितना गौरवमय, कितना उदात्त और अनुपम स्वरूप है मेरे राष्ट्र पुरुष बालकृष्ण का! महाभारत के निर्माता, युग प्रवर्तक इस महामानव का बचपन भी अन्य महापुरुषों के बचपन की भांति ही महान् और अपने में भावी पराक्रमों एवं उत्कर्ष का बीजांकुर छिपाये था। ‘बाल कृष्ण छवि कहत न आवे’, कवि-कल्पना को दौड़ लगाने को प्रचुर सामग्री मिली। आरम्भ में हल्के अलंकारों से सजाया तो छवि और निखरी प्रतीत हुई। परवर्ती कवियों के अलंकारमोह ने नन्हे बालकृष्ण को खूब लाद दिया। भूषण, भार बन गये। अलंकार चमत्कार बने और फिर अवतारवाद की आड़ में मन का पाप भी खूब खिला। अब जो बालकृष्ण की तस्वीर बनी वह कितनी विकृत, घिनौनी और विद्रूप थी। अन्तर कराह उठता है।
मत छीनो, मुझसे मेरे कृष्ण के सहज सलौने स्वरूप को! हटाओ, इन अलंकारों और चमत्कारों के बोझ को! जिनको चमत्कार समझे हो वे चमत्कार हैं कहाँ ? जान बूझकर हमने इसलिए कृष्ण जन्म और बाल काल का वर्णन पुराणाश्रित ही किया है। मानव मनोविज्ञान की भूमिकाओं को चमत्कारों का नाम न दो और देखो कि चमत्कार – अलंकार विहीन बालकृष्ण का स्वरूप कितना महिमामय, सहज और बुद्धिगम्य है।
यह गुरुकुल का स्नातक ब्रह्मचर्य बल, विद्या के दिव्य तेज में दीप्तिमान्, गुरुजन – आज्ञाकारी, परोपकारी, व्रती, सेवापरायण, माधुर्य-मूर्ति युवा कृष्ण हैं। स्नातक होने के पश्चात् संसार क्षेत्र में प्रवेश के साथ ही कंस और उसके अत्याचारी शासन के उन्मूलन, द्वारिका प्रस्थान और रुक्मिणी-परिणय के प्रसंगों में कृष्ण के यशस्वी जीवन की पृष्ठ भूमि के प्रथम भाग के सहज स्वरूप से परिचय प्राप्त कीजिए।
Weight | 500 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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